मदर्स डे पर विशेष.......
मां के पैरों में जन्नत होती है
डॉ.धर्मवीर चन्देल
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में 'मां' का सबसे ऊचा दर्जा है, तभी तो कहा गया है कि 'भगवान हर किसी के साथ नहीं रह सकते, इसलिए उसने 'मां' को बनाया।' मां हमेशा हमारे लिए उपलब्ध रहती हंै, ईश्वर की तरह हमारी परवरिश करती है, अगर इस धरती पर कोई भगवान है तो वो हमारी मां हैं। मां के लिए शायर ताबिश अब्बास लिखते हैं-'एक मुद्दत से मेरी मां नहीं सोई ताबिश, मैंने इक बार कहा था, मुझे अंधेरे से डर लगता है।' इन अफ्लाजों से यह समझा जा सकता है कि मां का हमारी जिन्दगी में कितना महत्व हैं? शायर मुन्नवर राना की शायरी तो मुख्य रूप से मां पर ही के्द्रिरत हैं, उनका शेर-'किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकान आई, मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से में मां आई।' कहा जाता है कि बच्चा जब जन्म लेता है तो सबसे पहले वह 'मां' शब्द ही बोलता है। मां ही एक ऐसा शब्द है, जिसका उच्चारण दिल की गहराइयों से निकलता है। भारतीय संस्कृति में मां का मुकाम सबसे ऊपर है, मां को दुनिया का सबसे बड़ा सर्जक कहा गया है, जो अपने शरीर से दूसरे शरीर को जन्म देती है, तभी तो कहा गया है कि मां के पैरों में जन्नत होती है। मां को स्मरण करते हुए भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदनलाल सैनी कहते हैं कि मां एक कुशल डॉक्टर, सफल अर्थशास्त्री, बेहतरीन कुक और उच्च दर्जे की किसान विज्ञानिक हैं। जबकि राज्य सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव (वित्त) निरंजन आर्य तो मां को याद करके करीब पांच मिनट के लिए शून्य में ताकते हुए मौन हो जाते हैं। फिर कहते हैं कि मां के लिए क्या कहूं, उनका तो जीवन की हर धड़कन से रिश्ता रहा है। भाजपा की वरिष्ठ नेता एवं विधायक अनिता भदेल कहतीं हैं कि मातृ दिवस एक दिन ही क्यों मनाया जाए? हर दिन या कहूं कि हर पल क्यों नहीं मनाया जाए। मैं तो मां को ईश्वर से ऊचा स्थान मानती हूं। बहरहाल, किसी शायर ने कहा है-'खुदा का दूसरा रूप है मां, ममता की गहरी झील है मां, वो घर किसी जन्नत से कम नहीं, जिस घर में खुदा की तरह पूजी जाती है मां।' मातृ दिवस पर समाज के कुछ विशिष्टजनों से बातचीत की गई, प्रस्तुत हैं बातचीत के सम्पादित अंश-
मां कहती थी, किसी का ओलमा नहीं आना चाहिए: सैनी
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष एवं सांसद मदनलाल सैनी अपनी 96 वर्षीय मां को याद करते हुए कहते हैं कि मां तो मां होती हैं, उससे बड़ा दुनिया में कोई नहीं। मां बचपन से कहती थी कि किसी का बाहर से ओलमा नहीं आना चाहिए, उनकी यह बात जीवन का बीज मंत्र बन गई। आज मां स्वस्थ रूप से जीवन के 96 बसंत गुजार रही हैं, वे सीकर में रहती हैं, मेरी व्यस्ता के चलते सीकर इन दिनों ज्यादा जाना नहीं हो पाता है। लेकिन जब भी मां से मिलना होता है तो मां बड़े प्यार से कहती है कि 'आज तो बड़ो भायो आयो है।' सैनी बताते हैं कि मां निरक्षर हैं, लेकिन वह एक कुशल डॉक्टर, सफल अर्थशास्त्री, बेहतरीन कुक और उच्च दर्जे की किसान वैज्ञानिक हैं। बचपन में थोड़ा सा बुखार होने पर घर की औषधि, घर चलाने के लिए सफल अर्थशास्त्री और खेती-किसानी में उच्च दर्जे की किसान वैज्ञानिक हैं। उनका एक सबक आज भी स्मरण हैं कि 'पढ़ते रहोगे तब तक पढ़ाते रहेंगे, जिस दिन फेल हो गए, उसी दिन से खेती करनी होगी।'
पिताजी ने ही दिया, मां और बाप का प्यार: महेश जोशी
विधानसभा में सरकारी उप मुख्य सचेतक डॉ.महेश जोशी कहते हैं कि मेरे लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि मेरी मां पौने दो साल में ही मुझे छोड़कर भगवान के पास चली गई। ऐसे में मेरी पिताजी ने हम सभी पांचों भाई-बहिनों को मां और बाप का प्यार देकर बड़ा दिया। हालांकि, मां के निधन के बाद मेरी मेरी चाचीजी ने कुछ वर्षों तक मेरा लालन-पालन किया, लेकिन मेरी हर ख्वाहिश की पूति मेरे पिताजी और मेरी बड़ी बहिनों ने की। पिताजी ने जीवन के कई सबक सिखाए। आज भी याद है कि जब पिताजी के साथ खाना खाते थे तो घी लगी हुई बीच की अधिक रोटी हमें खिलाई जाती थी और चारों ओर कम घी लगी हुई रोटी पिताजी खाते थे। कभी-कभी मैं भी मां को याद कर रूहासा हो जाता था, लेकिन उसी समय मेरे पिताजी मुझे समझाते हुए कहते थे, बेटा आपकी मां अच्छी थी, जिन्हंे भगवान ने अपने पास बुला लिया।
मां हमेशा हमारे फेवर में होती थी-नीलकमल दरबारी
भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव नीलकमल दरबारी अपनी मां को याद करती हुई कहतीं हैं कि मां को गए हुए करीब दो दशक हो गए, लेकिन उनकी नसीहत आज भी हमें जीवन के हर कदम पर याद आती हैं। उन्होंने ही समझाया कि जीवन में क्या अच्छा है और क्या बुरा है? जीवन में मूल्यों का बड़ा महत्व है और सत्य को जीवन में आत्मसात करना ही मनुष्य का ध्येय है, यह सबक भी मां की ही देन हैं। मां अपने समय के आगे थी, उस दौर में परिवार में हम भाई-बहिनों में वे हम बहिनों का ही पक्ष लेती थीं। आज मैं जो कुछ हूं, वह मेरी मां की ही देन हैं। आज भी जब मैं उन्हें स्मरण करती हूं तो आंखों की दोनों कोर गीली हो जाती हैं।
मां के पैरों में जन्नत होती है
डॉ.धर्मवीर चन्देल
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में 'मां' का सबसे ऊचा दर्जा है, तभी तो कहा गया है कि 'भगवान हर किसी के साथ नहीं रह सकते, इसलिए उसने 'मां' को बनाया।' मां हमेशा हमारे लिए उपलब्ध रहती हंै, ईश्वर की तरह हमारी परवरिश करती है, अगर इस धरती पर कोई भगवान है तो वो हमारी मां हैं। मां के लिए शायर ताबिश अब्बास लिखते हैं-'एक मुद्दत से मेरी मां नहीं सोई ताबिश, मैंने इक बार कहा था, मुझे अंधेरे से डर लगता है।' इन अफ्लाजों से यह समझा जा सकता है कि मां का हमारी जिन्दगी में कितना महत्व हैं? शायर मुन्नवर राना की शायरी तो मुख्य रूप से मां पर ही के्द्रिरत हैं, उनका शेर-'किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकान आई, मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से में मां आई।' कहा जाता है कि बच्चा जब जन्म लेता है तो सबसे पहले वह 'मां' शब्द ही बोलता है। मां ही एक ऐसा शब्द है, जिसका उच्चारण दिल की गहराइयों से निकलता है। भारतीय संस्कृति में मां का मुकाम सबसे ऊपर है, मां को दुनिया का सबसे बड़ा सर्जक कहा गया है, जो अपने शरीर से दूसरे शरीर को जन्म देती है, तभी तो कहा गया है कि मां के पैरों में जन्नत होती है। मां को स्मरण करते हुए भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदनलाल सैनी कहते हैं कि मां एक कुशल डॉक्टर, सफल अर्थशास्त्री, बेहतरीन कुक और उच्च दर्जे की किसान विज्ञानिक हैं। जबकि राज्य सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव (वित्त) निरंजन आर्य तो मां को याद करके करीब पांच मिनट के लिए शून्य में ताकते हुए मौन हो जाते हैं। फिर कहते हैं कि मां के लिए क्या कहूं, उनका तो जीवन की हर धड़कन से रिश्ता रहा है। भाजपा की वरिष्ठ नेता एवं विधायक अनिता भदेल कहतीं हैं कि मातृ दिवस एक दिन ही क्यों मनाया जाए? हर दिन या कहूं कि हर पल क्यों नहीं मनाया जाए। मैं तो मां को ईश्वर से ऊचा स्थान मानती हूं। बहरहाल, किसी शायर ने कहा है-'खुदा का दूसरा रूप है मां, ममता की गहरी झील है मां, वो घर किसी जन्नत से कम नहीं, जिस घर में खुदा की तरह पूजी जाती है मां।' मातृ दिवस पर समाज के कुछ विशिष्टजनों से बातचीत की गई, प्रस्तुत हैं बातचीत के सम्पादित अंश-
मां कहती थी, किसी का ओलमा नहीं आना चाहिए: सैनी
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष एवं सांसद मदनलाल सैनी अपनी 96 वर्षीय मां को याद करते हुए कहते हैं कि मां तो मां होती हैं, उससे बड़ा दुनिया में कोई नहीं। मां बचपन से कहती थी कि किसी का बाहर से ओलमा नहीं आना चाहिए, उनकी यह बात जीवन का बीज मंत्र बन गई। आज मां स्वस्थ रूप से जीवन के 96 बसंत गुजार रही हैं, वे सीकर में रहती हैं, मेरी व्यस्ता के चलते सीकर इन दिनों ज्यादा जाना नहीं हो पाता है। लेकिन जब भी मां से मिलना होता है तो मां बड़े प्यार से कहती है कि 'आज तो बड़ो भायो आयो है।' सैनी बताते हैं कि मां निरक्षर हैं, लेकिन वह एक कुशल डॉक्टर, सफल अर्थशास्त्री, बेहतरीन कुक और उच्च दर्जे की किसान वैज्ञानिक हैं। बचपन में थोड़ा सा बुखार होने पर घर की औषधि, घर चलाने के लिए सफल अर्थशास्त्री और खेती-किसानी में उच्च दर्जे की किसान वैज्ञानिक हैं। उनका एक सबक आज भी स्मरण हैं कि 'पढ़ते रहोगे तब तक पढ़ाते रहेंगे, जिस दिन फेल हो गए, उसी दिन से खेती करनी होगी।'
पिताजी ने ही दिया, मां और बाप का प्यार: महेश जोशी
विधानसभा में सरकारी उप मुख्य सचेतक डॉ.महेश जोशी कहते हैं कि मेरे लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि मेरी मां पौने दो साल में ही मुझे छोड़कर भगवान के पास चली गई। ऐसे में मेरी पिताजी ने हम सभी पांचों भाई-बहिनों को मां और बाप का प्यार देकर बड़ा दिया। हालांकि, मां के निधन के बाद मेरी मेरी चाचीजी ने कुछ वर्षों तक मेरा लालन-पालन किया, लेकिन मेरी हर ख्वाहिश की पूति मेरे पिताजी और मेरी बड़ी बहिनों ने की। पिताजी ने जीवन के कई सबक सिखाए। आज भी याद है कि जब पिताजी के साथ खाना खाते थे तो घी लगी हुई बीच की अधिक रोटी हमें खिलाई जाती थी और चारों ओर कम घी लगी हुई रोटी पिताजी खाते थे। कभी-कभी मैं भी मां को याद कर रूहासा हो जाता था, लेकिन उसी समय मेरे पिताजी मुझे समझाते हुए कहते थे, बेटा आपकी मां अच्छी थी, जिन्हंे भगवान ने अपने पास बुला लिया।
मां हमेशा हमारे फेवर में होती थी-नीलकमल दरबारी
भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव नीलकमल दरबारी अपनी मां को याद करती हुई कहतीं हैं कि मां को गए हुए करीब दो दशक हो गए, लेकिन उनकी नसीहत आज भी हमें जीवन के हर कदम पर याद आती हैं। उन्होंने ही समझाया कि जीवन में क्या अच्छा है और क्या बुरा है? जीवन में मूल्यों का बड़ा महत्व है और सत्य को जीवन में आत्मसात करना ही मनुष्य का ध्येय है, यह सबक भी मां की ही देन हैं। मां अपने समय के आगे थी, उस दौर में परिवार में हम भाई-बहिनों में वे हम बहिनों का ही पक्ष लेती थीं। आज मैं जो कुछ हूं, वह मेरी मां की ही देन हैं। आज भी जब मैं उन्हें स्मरण करती हूं तो आंखों की दोनों कोर गीली हो जाती हैं।